Anupama Garg

यौन कुंठित लोगों की कैसे पहचान कर सकते हैं?

एक लाइन में उत्तर देना हो तो कहूँगी, लगभग हम सभी किसी न किसी हद तक यौन कुंठित हैं। देख लीजिये सभी को, कुछ हद तक खुद को भी शीशे में। पहली बात ये कि किसी के माथे पर नहीं लिखा होता कि वे यौन कुंठित हैं।

दूसरी बात कुंठा क्या है? फ़्रस्ट्रेशन या कुंठा का मतलब है, जब कोई इच्छा पूरी न हो, और इस बात से खीझ हो। तो दुनिया में कौन है जिसको सेक्सुअल फ़्रस्ट्रेशन कभी न कभी नहीं होती ? हाँ यहाँ ये देखना ज़रूरी है कि सिर्फ फ़्रस्ट्रेशन है, या कोई उस फ़्रस्ट्रेशन के कारण किसी का यौन उत्पीड़न कर रहा है ? कहीं ये सेक्सुअल फ़्रस्ट्रेशन अस्वस्थ रूप तो धारण नहीं कर रही ?

अस्वस्थ रूप की भी कई परिभाषाएं हो सकती हैं। खुद को नुकसान पहुँचाना, किसी से ज़बरदस्ती करना, किसी और को नुकसान पहुँचाना, सेक्सुअल फ़्रस्ट्रेशन का रोज़मर्रा के जीवन पर सामान्य से ज़्यादा प्रभाव पड़ना, जिस जेंडर के प्रति आप आकर्षित होते हैं उसी जेंडर के प्रति घृणा महसूस करने लगना , ये सब अस्वस्थ कुंठा की परिभाषाएं हो सकती हैं। अब ये कुंठा किसी की शक्ल पर तो लिखी नहीं होती। तो यौन कुंठित लोगों को पहचानेंगे कैसे?

लेकिन यदि मैं सही समझ पा रही हूँ, और आपका सवाल ये है कि अपने बच्चों, या उम्रदराज़ लोगों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षित कैसे रखें, तो वो एक अलग प्रश्न है। उस पर एक अलग पोस्ट में चर्चा करेंगे। पर कुंठा के सन्दर्भ में एक चीज़ ज़रूर है जिस पर बात की जानी चाहिए। वो है कि हम ऐसा क्या कर सकते हैं, कि सेक्सुअल फ़्रस्ट्रेशन हमारे आस पास कम पनपे, या अगर पनपे भी, तो उससे डील कैसे करें?

तो सबसे पहली ज़रूरी चीज़ है, स्वस्थ संवाद। अगर हम अपने आस पास खुल कर ये स्वीकार कर पाते हैं कि सेक्सुअल डिजायर नार्मल है, SEX  भी नार्मल है, तो आधी समस्या ख़त्म हो जाती है। आप अक्सर लोगों को कहते सुनेंगे, अरे सेक्स के बारे में बात करने का क्या है? सब को तो पता है, यहाँ तक कि कुछ लोग ये भी कि बच्चियों को तो गुड टच बैड टच पहले से पता होता है। उनसे कोई पूछे बच्चे माँ के पेट से सेक्स के बारे में तो सीख कर नहीं आते।
ये भी कहा जाता है, सेक्स के बारे में बात करना ‘व्यभिचार’ को बढ़ावा देना है। तो मेरा प्रश्न ये है, अब तक ज़्यादा बात नहीं होती थी, और कुंठाओं के पनपने का अंत नहीं है। रोज़ अख़बार में सो-कॉल्ड-एडल्ट्स के व्यभिचार, बच्चों के साथ रेप और पता नहीं किस किस यौन कुंठा का क्या क्या नतीजा पढ़ने को मिलता है। न बात कर के कौनसे झंडे गाड़ लिए हमने मर्यादा के ?

इससे बेहतर है कम से कम सलीके से बात ही कर लें हम सब एक सभ्य समाज की तरह इस विषय पर। ये बिलकुल सच है, कि हर किसी के बस की नहीं है इस विषय पर गंभीर, स्वस्थ, और शालीन चर्चा करना। लेकिन जो कर रहे हैं, उन्हें ही पढ़ लें, बजाय ट्रोल करने के तो कुछ समझ विकसित होगी, और कुंठाओं से थोड़ी मुक्ति मिल पायेगी शायद।

तो पहली बात तो हुयी संवाद। जब सेक्स को नार्मल समझा जाने लगेगा तो अपने आप वो दूर की कौड़ी लगना बंद हो जायेगा। उसे हासिल करना कोई किला फतह करने जैसा नहीं लगेगा। ‘यार मैंने उसकी ले ली ‘ तरह की भाषा अपने आप ही अप्रासंगिक हो जाएगी। लेकिन दूसरी चीज़ है कि यदि फ़्रस्ट्रेशन है ही, तो उसे सुलझाया कैसे जाये?

समझें कि सेक्सुअल फ़्रस्ट्रेशन या यौन कुंठा कोई मेडिकल कंडीशन नहीं है। ये सेक्सुअल arousal, यौन उत्तेजना जैसी लग सकती है, लेकिन है नहीं। यौन उत्तेजना का अर्थ है सेक्स करने की चाह, और उसके शारीरिक और मानसिक तौर पर दिखने वाले चिन्ह, लेकिन अगर बहुत बार सेक्सुअल उत्तेजना के बाद सेक्स की चाह की पूर्त्ति न हो, तो  ये फ़्रस्ट्रेशन या कुंठा में बदल सकती है।

ऐसे में सेक्सुअल डिजायर की संतुष्टि करना या न करना ये हर व्यक्ति की अपनी अलग चॉइस हो सकती है। किसको कितनी फ़्रस्ट्रेशन होगी ये भी व्यक्तिगत मसला है। फ़्रस्ट्रेशन इसलिए है कि सेक्स कर नहीं पा रहे, या इसलिए कि सेक्स की क्वालिटी से संतुष्ट नहीं हैं, ये भी व्यक्ति से व्यक्ति पर निर्भर करता है।

कुछ लोगों को मास्टरबेशन या हस्तमैथुन इसका सुगम उपाय लगता है, कुछ लोगों को कैज़ुअल सेक्स, हुक अप, या संभवतः पेड सेक्स, या वैश्यालय जाना भी इसका उपाय नज़र आ सकता है।  कुछ लोग इसके उपाय में औरतों या पुरुषों को बेवकूफ बना कर, फुसला कर, उनके साथ सोने का प्रयत्न करते हैं।

कुछ लोग पोर्न देख कर अपनी फ़्रस्ट्रेशन मिटाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस फ़्रस्ट्रेशन का कुछ नहीं करते, उसे भी जीवन के एक नार्मल हिस्से की तरह स्वीकार कर के उसके साथ अपने आप को थाम कर रखते हैं। ऐसे लोग भी हैं, जो hobbies, स्पोर्ट्स, और दूसरे constructive तरीकों का इस्तेमाल करते हैं अपनी फ़्रस्ट्रेशन से डील करने में। अब इनमें से किस तरीके से फ़्रस्ट्रेशन वाकई मिट जाती है, और किस्से नहीं, ये एक अलग ही समझ विकसित करने का मुद्दा है।

मैं यहाँ न तो किसी भी तरीके का समर्थन कर रही हूँ, न ही उसकी आलोचना। इसलिए ये व्यभिचार, और वैश्यालय, और सेक्सुअल एब्यूज टाइप की बकवास ले कर न आएं। मैंने सिर्फ कुछ तरीकों के बारे में यहाँ बात की है।

इसी तरह इनमें से कौनसे तरीके ठीक हैं, कौनसे नहीं इस को समझने के कई नज़रिये हैं – एक एथिकल (मैंने जान बूझ कर मॉरल शब्द काम नहीं लिया है यहाँ ) या नैतिक, वैधानिक या लीगल, साइकोलॉजिकल या मानसिक, सोशल या सामाजिक, इमोशनल या भावनात्मक आदि।

इन सब चीज़ों को देखते समय एक चीज़ और ध्यान रखने की है, वो है सेक्स, सेक्सुअलिटी, सेक्सुअल हेल्थ सम्बंधित चीज़ों का बाज़ारीकरण। ये सिर्फ पोर्न, सुली डील्स, सेक्स वर्क आदि के रूप में ही नहीं, बल्कि सेक्स टॉयज, कंडोम्स, लुब्रिकेंट्स, गर्भ निरोधक, STD टेस्ट्स, अवेयरनेस, पुस्तकें (ज्ञानवर्धक भी, और अश्लील भी), फिल्मों, कपड़ों आदि बहुत सारे रूपों में  देखने को मिलता है।

इसकी समझ विकसित करना इसलिए ज़रूरी है ताकि, सेक्स और सेक्सुअलिटी सम्बंधित अपने निर्णय लेते समय समझदारी के साथ चॉइस बनायीं जा सके।
सेक्स, सेक्सुअलिटी से सम्बंधित विषयों को एक पोस्ट या कुछ पोस्ट्स में समझना, समझाना, संवाद कायम करना, या समेटना संभव नहीं है, इसलिए अभी के लिए यहीं तक। 

डिस्क्लेमर लेख में हम सेक्स और सेक्सुअलिटी के सम्बन्ध में बात इसलिए कर रहे हैं ताकि पूर्वाग्रहों, कुंठाओं से बाहर आ कर, इस विषय पर संवाद स्थापित किया जा सके, और एक स्वस्थ समाज का विकास किया जा सके। यहाँ किसी की भावनाएं भड़काने, किसी को चोट पहुँचाने, या किसी को क्या करना चाहिए ये बताने का प्रयास हरगिज़ नहीं किया जाता। ऐसे ही, कृपया ये प्रयास मेरे साथ न करें। प्रश्न पूछना चाहें, तो गूगल फॉर्म संलग्न है, वहां पूछ सकते हैं।

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Anupama Garg
Anupama is an ever-evolving person, deeply interested in human behavior, specially human sexuality. She has vastly researched alternative sexual lifestyles and has also written a series of non-fiction books on the subject with a pseudonym.

She believes in transforming the outlook towards sexuality by structured, quality conversations, one at a time. Apart from this space, she works as a content specialist and researcher, writes poetry and sings for passion.

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