राजेश्वर वशिष्ठ

1.
रुद्र प्रयाग में बड़े वेग से लुढ़क रहा है जल
चट्टानों की त्रिवली में.
किनारों पर कांप रहे हैं पेड़ और घुमावदार सड़कें
किसी पुराने मंदिर की साक्षी में.
अचानक शांत हो जाती है मंदाकिनी
मिलते हुए अलकनंदा से.
कुछ देर दोनों रहती हैं मौन
वर्षों बाद मिली स्त्रियों की तरह.
चलती हैं साथ-साथ गुनगुनाती बतियाती.
बस देवप्रयाग पहुँचती है केवल अलकनंदा
अपने धूसर जल के साथ.
मैं उदास हूँ मंदाकिनी के लिए.
बर्फ सा शीतल है भगीरथी का हरा-सा जल
उसने अभी तक सहेज रखी है गंगोत्री की आत्मा.
देव प्रयाग में वह अजनबियों की तरह
मिलती है अलकनंदा से,
कुछ दूर साथ साथ बहता है धूसर और हरा रंग.
मैं उदास हूँ अलकनंदा के लिए.
भगीरथी मुस्कुराती है मुझे देख कर
किसी छरहरी सर्पिणी-सी.
काँपता है पतला-सा लोहे का पुल.
नदी बह जाती है मैदान की ओर
जहाँ उसे धोने हैं सब के पाप
लोग उसे पुकारते हैं — गंगा.
मैं उदास हूँ भगीरथी के लिए.
2.
बादल हैरान हैं कई दिनों से.
हवा ने कई बार कोशिश की
पानी को अनावृत करने की.
जलकुम्भियों से भर गया है पूरा तालाब.
पानी नहीं ले पा रहा है साँस.
क्या जीवित बचा होगा पानी?
मैं उदास हूँ पानी के लिए.
‌‌‌‌‌‌‌‌
3.
धनोल्टी में महक-सी रही है ठण्डी हवा.
बहुत लम्बा पेड़ है मेरे सामने
बादलों से कहीं ऊपर
सैंकड़ों यज्ञोपवीत पहने;
अमर बेलों ने उसे
आसमान तक पहुँचने की सीढ़ी बना लिया है.
मैं उदास हूँ पत्तों और टहनियों के लिए.
4.
दिन में कई बार चेक करता हूँ
फेसबुक और व्हाट्स-एप.
पढ़ता हूँ पुराने स्टेटस और कमेण्टस.
लगाता हूँ कितने सारे अनुमान
तुम्हारी अनुपस्थिति को लेकर.
परेशानी और बेचैनी में
पिघलने लगता हूँ
किसी ग्लेशियर की तरह;
बहती है प्रतीक्षा की एक नदी.
मैं उदास हूँ बस तुम्हारे लिए.

राजेश्वर वशिष्ठ  –
एक स्वतन्त्र लेखक है, आप अपनी अनूठी कविताओं और किस्से कहने के लिए जानें जाते है।