Sanjiv Kumar Sharma –

भोजन करना मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण क्रियाओं में से एक है, यह हमारी मूलभूत आवश्यकता है। दुनिया में बहुत बड़ा संघर्ष रोटी को ले कर ही है। वास्तव में दुनिया दो खेमों में बंट गयी है – एक के लिए भोजन जीने का सहारा है और दूसरे के लिए भोजन मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन है। इसके बीच भोजन का अपना विज्ञान क्या है और और उसका हमारे शरीर के लिए क्या महत्व है यह समझना हम सबके लिए जरूरी है।


भोजन का प्राकृतिक स्वाद इस तरह का है कि हमको आनंद आए, शरीर उसे पचाने के लिए नैसर्गिक रूप से तैयार हो और पचने के बाद उससे शरीर को वे सभी पोषक तत्व मिलें जिनकी आवश्यकता है। लेकिन कंडीशनिंग, आदत, परंपरा और भोजन में बाजार की अनावश्यक दख़ल का नतीजा यह होता है कि हमको कृत्रिम स्वाद पसंद आने लगता है, पोषण में अधूरा और कैलोरी से ठूँसा हुआ और तरह-तरह के रसायनों से भरा हुआ भोजन खाने की तलब लगती है।

जब भोजन आदत, परंपरा, स्वाद की कंडीशनिंग और मनोरंजन का साधन बन कर रह जाता है तो वह शरीर को ताकत देने, उसे सेहतमंद रखने की बजाय उसे बीमारियों का घर बनाने लगता है। हमारी 60%-70% बीमारियों का कारण हमारा भोजन ही है। ऐसिडिटी, बदहजमी, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियाँ, लीवर के रोग, डायबिटीज़, जोड़ों के रोग, समय से पहले बुढ़ापा आदि अनेक बीमारियों के पीछे हमारा भोजन ही जिम्मेदार होता है।

डिब्बों में मिलने वाला भोजन सबसे नुकसानदायक होता है। यदि हम लेबल पढ़ने की कला सीख लें तो हम चौंक जाएँगे कि तरह-तरह के खूबसूरत नामों से मिलने वाले खाने-पीने के सामान किस तरह की हानिकारक सामग्री से भरे हुए होते हैं। इनमें सुबह को संवारने वाले बिस्किट से लेकर शाम की चाय को ख़ुशनुमा बनाने वाले रस्क भी हैं, बच्चों को ललचाती नूडल्स भी हैं और तरह-तरह के स्वादिष्ट पेय भी हैं। हेल्थी कह कर बिकने वाली ब्रेड भी हैं और जीभ को लुभाने वाली नमकीन भी हैं। इनमें मैदा, सफेद चीनी, नमक, नुक़सादायक फैट जैसे हानिकारक तत्व तो हैं ही उसके साथ-साथ प्रिज़रवेटिव, टेस्ट एनहेंसर, रंग, ऐसिडिटी रेग्युलेटर, डो कंडीशनर जैसे शरीर को समस्याओं का शिकार बनाने वाले अनेक रसायनों की भी भरमार रहती है। प्रॉसेस किए हुए और डिब्बाबंद भोजन से जितनी दूरी होगी सेहत उतनी ही नजदीक होगी।


कई बार सुबह बेड टी, बिस्किट या रस्क से शुरू होने वाला हमारे खाने का सिलसिला मध्य रात्रि तक जारी रहता है। 13 घंटे की अवधि तक खाते रहना तो बहुत आम है। इसका नतीजा यह होता है शरीर हमेशा भोजन ही पचाता रहता है और बाकी कामों के लिए उसे समय ही नहीं मिलता। लंबे समय तक खाते रहने का एक परिणाम यह भी होता है कि शरीर में रक्त का दौरा भी ठीक से नहीं होता क्योंकि भोजन को ठीक से पचाने के लिए शरीर पाचन तंत्र के आस-पास ही रक्त की अधिक मात्रा रखता है। यदि हम खाने की अवधि को 8-9 घंटे के अंदर ले आएँ तो शरीर को बहुत राहत मिलेगी और वह दूसरे जरूरी काम कर सकेगा और स्वास्थ्य में सुधार होने लगेगा। सोने के तीन घंटे पहले खाने-पीने का काम खत्म कर लिया जाए तो नींद भी अच्छी आएगी और शरीर की सर्केडियन रिदम भी ठीक होने लगेगी।

पुरानी कहावत है कि नाश्ता राजा की तरह करो, लंच आम आदमी की तरह और डिनर गरीब आदमी की तरह। इस कहावत के पीछे किसी परंपरा की बजाय नाश्ता के डिब्बाबंद उत्पाद बनाने वाली कंपनियों का हाथ ज्यादा लगता है। सुबह के शरीर दिन की शुरुआत के लिए ऊर्जा की माँग कर रहा होता और उसके साथ-साथ टॉक्सिक को निकालने के काम में भी लगा होता है। ऐसे में ताजे और सूखे फल और कच्चा नारियल आदि दिन की शुरुआत करने के लिए बेहतरीन विकल्प हैं। उनसे शरीर को पोषक तत्व और ऊर्जा मिल जाती है और उनको पचाने में शरीर पर इतना भार भी नहीं पड़ता कि उसे अपने दूसरे काम रोकने पड़ें और सुस्ती का प्रभाव भी फैल जाए।

उसके बाद लंच में कच्ची सब्ज़ियों से शुरुआत करके फिर साबुत दालों, बीन्स, सब्ज़ियों, अनाज और बीजों आदि से बने भोजन को खाकर हम शरीर को आवश्यक प्रोटीन, फ़ैट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज आदि आराम से प्रदान कर सकते। उसके बाद रात में सोने से तीन घंटे पहले हल्का सूप, स्वादिष्ट सेहतमंद डिप के साथ उबली सब्ज़ियाँ या बढ़िया सलाद के साथ दिन के भोजन की समाप्ति करना शरीर के लिए बहुत आनंददायक होता है और जो भी शरीर को अच्छा लगता है वही सेहत का संदेश लाता है।

आग की खोज ने इंसान के जीवन में अभूतपूर्व क्रांति ला दी थी। वह अपना भोजन पका कर खाने लगा और बिना आग के जिन चीजों को खाना असंभव था उनको आग ने सुस्वादु व्यंजन में बदल दिया। लेकिन जब हमारी जीभ को खास किस्म के स्वादों की आदत लगी तो हमने भोजन को अनावश्यक रूप से खदकाना, भूनना, तलना और जलाना शुरू कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे भोजन से पोषक तत्वों का सफाया हो गया और दो इंच की जीभ की सेवा पांच-छह फुट के शरीर पर भारी पड़ने लगी।


यदि हमारे भोजन में 30-40 प्रतिशत कच्चा हो, 30-40 प्रतिशत उबला हुआ हो और शेष 30-40 प्रतिशत उतना पका हो जितना जरूरी है तो भोजन अपने आप संतुलित हो जाएगा और हमें सभी आवश्यक पोषक तत्व आराम से मिलने लगेंगे। फिर न हमको किसी स्पेशल डाइटिंग की जरूरत होगी और न ही किसी वजन कम करने के चमत्कारी नुस्खे की। फिर कोई भी समस्या हो तो विशेषज्ञ से मिलें खुद ही विशेषज्ञ न बनें।


प्रकृति ने हमारा शरीर इस तरह निर्मित किया है कि हमको भोजन में विभिन्नता या डाइवर्सिटी की जरूरत होती है। अलग-अलग तरह के साबुत अनाज, दालें और बीन्स हमारे भोजन का हिस्सा होना चाहिए। हर रंग की सब्ज़ियाँ खाना जरूरी है क्योंकि हर रंग की सब्जी में कुछ खास तरह के पोषक तत्व और फायटोकेमिकल होते हैं, इस लिए विशेषज्ञ रेनबो डाइट खाने की सलाह देते हैं। ऐसे में यह दावा करना कि कोई खास खाद्य पदार्थ या मसाला या जड़ी-बूटी चमत्कार कर देंगे और स्वास्थ्य की सारी समस्याएँ गायब हो जाएँगी या वजन एकदम सही हो जाएगा वैसे ही है जैसे चमत्कारी भभूत से सभी रोगों को दूर भगाने का दावा।


An author, thinker, translator and a travel-enthusiastic visited almost all states of India in his wheelchair. He had polio paralysis of both the lower limbs at an early age and could not get into the formal system of education, ie schooling. On his own, he started with formal mainstream education at home, and appeared in few exams privately but soon realised about the inadequacy of traditional approach to education and started self-study in his way.

Sanjiv stayed in a room for more than 12 years and spent time in reading books, writing, translating and contemplating on vital issues of human life, society and religion. He has studied literature, philosophy, science, religion and psychology. He started writing during adolescent and continues to write till the date. He has written many articles, poems and stories which got published in various newspapers and magazines. With the area of social media, he also has turned into a prolific writer on the internet.