अखिलेश प्रधान
अभी तक के जीवन में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तरीके से जितने भी सामाजिक कार्यकर्ता सेलिब्रिटी क्रांतिकारी सरीखे लोग मिले, आज उनको लेकर एक बात बड़ी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि उनमें से सब के सब बहुत अधिक परेशान/कुण्ठित से लोग लगे। इनके साथ मैंने बहुत सी गंभीर समस्याएँ देखी हैं जिनका जिक्र करना जरूरी समझ रहा हूं
 
1. अपने प्रति और जीवन के प्रति सहज नहीं होते हैं।
2. इनके भीतर आपको न्यूनतम स्तर की विनम्रता भी देखने को नहीं मिलती है। 
3. चिढ़चिढ़े स्वभाव के होकर अपने उस स्वभाव को श्रेष्ठताबोध की तरह पेश करते हैं।
4. बहुत ही सामान्य सी बात को, समाधान के उपायों को ये आपके लिए जटिल और पहाड़ सा कठिन बनाकर पेश करते हैं।
5. आप गहराई में जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि ये जीवन की छोटी-छोटी चीजों में बहुत अधिक अपरिपक्व अव्यवहारिक होते हैं।
6. मुख्यधारा के समाज, देश, काल, परिस्थिति के प्रति बहुत अधिक नफरत, कुंठा और हीनभावना से ग्रस्त होते हैं या ऐसा पेश करते हैं।
7. इन्हें सबको एक ही चश्मे से देखने और तौलने की गंभीर बीमारी होती है।
8. परिस्थिति अनुसार सलेक्टिव होना इन्हें बखूबी आता है, जहाँ इन्हें अपना स्वार्थ दीखता है, वहाँ ये बिना शर्म के लोट जाते हैं।
9. ये सामाजिकता और क्रांतिकारिता को आधार बनाकर आपका मनचाहे अपमान करने का विशेषाधिकार हासिल कर लेते हैं।
10. आत्मश्लाघा/आत्ममुग्धता/महानता से ग्रसित होते हैं और इसकी पूर्ति के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं।
11. ये सिर से लेकर पाँव तक महान होते हैं, इनकी सोच से लेकर दैनिक दिनचर्या की हर चीज महान होती है, बाकि पूरी दुनिया मूर्ख होती है। 
12. ये अपने अनुगामियों के समक्ष माहौल ऐसा बना देते हैं कि इनकी महानता के कसीदे पढ़ते हुए वे उम्मीद रख लें, फिर ये उन उम्मीदों को झटके में कुचल देते हैं। 
13. अपनी छोटी सी भी चूक/गलती/नासमझी के प्रति इनमें थोड़ा भी स्वीकार्यता का भाव नहीं होता है, क्योंकि ये स्वघोषित महान लोग होते हैं।
14. चूंकि ये महान और हर विधा के विशेषज्ञ होते हैं, इसलिए इनको जैसे कुछ नहीं भी आता है, उस विषय में भी ये सलाह दे जाते हैं, भले ही उस दी गई सलाह से सामने वाले का धीरे-धीरे जीवन बर्बाद हो जाए, तब भी चलेगा‌।
15. अपनी हर गलती को, निर्दयता और कुण्ठा से जड़ित अपनी अभिव्यक्ति को तर्क से साधकर सही सिध्द करने की कला में ये निपुण होते हैं।
16. खुद हर तरह के प्रिविलेज को जीते हुए दूसरों को खाली पेट सोने की सलाह देने जैसी क्रांतिकारिता कराने में इन्होंने मास्टरी की होती है।
17. किसी समस्या को या अपने साथ हुए शोषण या दुर्गति को एक महान उपलब्धि की तरह पेश करना असल‌ में इनका Modus Operandi होता है।
18. ये भयंकर प्रतिक्रियावादी होते हैं। बहस, वाद-विवाद करना इनका प्रिय शगल होता है क्योंकि इसी तरीके से ही जीवन का सार बाँटते फिरते हैं। 
19. क्रांति के नाम पर ये लोगों को जमकर उचकौना देते हैं, और उनको बहुत ही भयानक तरीके से दिग्भ्रमित कर देते हैं। 
20. युवापीढ़ी को अपने तथाकथित ज्ञान रूपी डंडे से अपनी कुण्ठा शांत करने के लिए खूब हांकते हैं और अंतत: उनका जीवन बर्बाद कर देते हैं।
21. भाई-भतीजावाद इनके रग-रग में होता है। खुद खूब मलाई खाएं कोई समस्या नहीं। लेकिन कोई सामान्य लड़का हो तो उस पर पूरी क्रांतिवादिता थोप देते हैं। जीवन मूल्यों से उसकी पूरी घेरेबंदी करने लगते हैं।
22. दूसरों के लिए जिन जीवन मूल्यों की ये घेरेबंदी करेंगे उनमें खुद को तो पूरी तरह फ्लेक्सिबल रखते हैं, लेकिन चाहेंगे कि सामने वाला पूरी तरह उन्हें जिए।
23. एक ओर हर तरह के भोग ऐश्वर्य को जीना और वहीं दूसरी ओर खुद को गरीब बेसहारा की तरह दिखाना इन्हें बखूबी आता है। 
24. आजीवन खुद को गरीब बेसहारा इसलिए भी दिखाते फिरते हैं ताकि इनका मलाई लूटने वाला हिंसक चरित्र खुल के सामने न दिखे।
25. दूसरों के जीवन की दिशा दशा बदलने का स्वांग पालने वाले ये लोग खुद के जीवन की हर चीज को महान और दूसरों को लगातार कमतर बताते रहते हैं।
26. कुछ लोग होते हैं, आपको सामने खराब कहते हैं, तुरंत पता चल जाता है।‌ लेकिन ये महान लोग जिस विचारशीलता की चासनी में आपको डुबोते हैं, उसका असली रंग लंबे समय बाद दिखता है। 
27. इनकी कपोल कल्पनाएं और इनके आसमानी विचार किसी स्वस्थ व्यक्ति के लिए आत्मघाती वायरस से कम नहीं होते हैं। 
28. ऐसे लोगों की संगति में जागरूकता के नाम पर आपकी मानसिक/वैचारिक क्षति होने की भरपूर गारंटी होती है।
29. इनके तथाकथित ज्ञानपेलू चरित्र और गुरू चेला बनाने वाली मानसिकता की वजह से इनके द्वारा युवापीढ़ी को सर्वाधिक मानसिक क्षति पहुंचती है।
30. अपने हितों को साधने के लिए ये जमकर आँकड़ों की बाजीगरी करते हैं, आपने कहीं गलती से स्त्रोत पूछ लिया, ये व्यक्तिगत होने लगते हैं।
31. ऐसे लोग हमेशा प्रिविलेज क्लास से ही आते हैं और अपनी प्रिविलेज का जमकर दुरूपयोग करते हैं।
32. हमेशा लोकतंत्र की बात करने वाले ये लोग अपने मूल चरित्र में भयानक अलोकतांत्रिक होते हैं।

33. विडम्बना देखिएगा कि नाना प्रकार के धूर्त बदमाश और तमाम ढीले लोग इनके गहरे करीबी मित्र ही होते हैं।
34. ईमानदारी इनके‌ लिए महज एक टूल होता है। जिस टूल की सहायता से ये अपने अहंकार को पोषित करते रहते हैं।
35. इनसे संपर्क और रिश्ते बनाए रखना बोर्डिंग स्कूल में भर्ती लेने जैसा होता है, आसानी से एंट्री होती नहीं और एंट्री के बाद बाहर आने में मुश्किलें आती हैं।
36. ये आपको मुख्यधारा के समाज से अलग करते हैं, आपके भीतर उनके प्रति विषवमन कराने के भाव की प्रविष्टि कर अंत में आपको हाशिए पर ढकेल देते हैं। 
37. आपको हमेशा इस भाव के साथ चिपकाकर रखते हैं कि मैं अपनी महानता से प्राणी जगत का उध्दार कर दूंगा और हमेशा पल्टी मार जाते हैं। क्योंकि वास्तव में इनमें ढेला भर की रचनाशीलता नहीं होती है। यह सब कुछ इनका गढ़ा गया पीआर ही होता है।
38. मुख्यधारा के आदमी को बेवजह की डाँट-डपट और कुढ़े हुए स्वभाव से नवाजते रहते हैं क्योंकि वह इनके गढ़े गए आभामण्डल का सम्मान करते हुए कभी इनके स्तर पर जाकर पलट के जवाब नहीं देता है। 
39. इनके जीवन का एक सूत्री कार्यक्रम या पीआर ही दूसरों को मानसिक क्षति पहुंचाकर मुद्रा और वर्चस्व हासिल करना होता है। 
40. ये इतने धूर्त होते हैं कि इनके चरित्र को उजागर करने में लिखते-लिखते ऐसे चालीस प्वाइंट बन जाएंगे लेकिन ये कभी आपके हाथ नहीं आएंगे।

अंत में यही कि जिस गाँधी के नाम पर ये अपनी दुकान चलाते हैं, काम तो उनके बिलकुल उलट करते हैं। जिस उम्र में गाँधी ने सब कुछ छोड़ के देश समाज के लिए खुद को झोंक दिया, उस उम्र तक ये लोग अपना सब कुछ सेट कर गाँधी के विचारों के नाम पर दुकान डाल चुके होते हैं। इनका सब कुछ गाँधी के विपरित ही होता है। गाँधी बाबा सच बोलते-बोलते दुनिया से चले गये, आज यह कहना गलत न होगा कि गोडसे से ज्यादा हत्या गांधी कि इन झूठे फरेबियों ने की है, लगातार कर रहे हैं। आज अगर गाँधी होते तो अपनी अहिंसा को एक दिन के लिए किनारे कर इनको सीधा कर देते…खैर। अपनी विनम्रता को ध्यान में रखते हुए अपनी बात को यहीं विराम देता हूं।
युवाहित में जारी

अखिलेश प्रधान   –
Writer, Thinker and First and Foremost a Wanderer