राजेश्वर वशिष्ठ

वे एकमत नहीं थे
सम्भावित तूफान को लेकर।
उनकी नावें और जाल
पड़े थे किनारे पर
पेट में भूख तड़प रही थी
किसी मछली की मानिंद
वे निराश थे
पाँच पाण्डवों की तरह।

धर्मराज युधिष्ठिर को लगता था
बादलों से भरता जा रहा है आसमान
चुप है विस्मित समुद्र
और बंद-सी हो गई है हवा;
आने ही वाला है तूफान।

कौरव डटे थे समुद्र में
ताल ठोक कर
अपनी पुरानी नावों में
मछलियाँ बटोरते हुए;
उनका अनुभव था
मौसम की भविष्यवाणियाँ
अक्सर निकलती हैं गलत
हमारे देश में।

युद्ध अभी नहीं हुआ था
धर्म युद्ध
आस पास नहीं थे कृष्ण
और द्रौपदी तो दूर दूर तक नहीं थी।

मछुआरे आश्वस्त थे
बिना बताए ही आएगा तूफान
सही नहीं निकलेंगी
मौसम विभाग की भविष्यवाणियाँ।

वे यह भी जानते हैं
हर जगह की तरह ही
यहाँ समुद्र के मुहाने पर भी
हो कर रहेगा महाभारत
मछलियों के लिए;
जिन्हें कब से रिझा रहे हैं दुर्योधन!

राजेश्वर वशिष्ठ  –