विजेंद्र दिवाच
देखते – देखते कुछ नहीं देखते,
सुनते – सुनते कुछ नहीं सुनते,
चलते – चलते कहीं नहीं चलते,
रुकते – रुकते कहीं नहीं रुकते,
हकलाते – हकलाते कभी नहीं हकलाते,
बतलाते – बतलाते कुछ नहीं बतलाते,
फटकारते – फटकारते खुद को कभी नहीं फटकारते,
संभालते – संभालते मन के भाव नहीं संभालते,
खाते – खाते कुछ नहीं खाते,
पीते – पीते कुछ नहीं पीते,
सोते – सोते कभी नहीं सोते,
जागते – जागते कभी नहीं जागते,
रोते – रोते कभी नहीं रोते,
हंसते – हंसते कभी नहीं हंसते,
टिकते -टिकते कहीं नहीं टिकते,
बहते – बहते कभी नहीं बहते,
भटकते – भटकते कहीं नहीं भटकते,
ठहरते – ठहरते कभी नहीं ठहरते,
सटकते -सटकते दिमाग नहीं सटकते,
रपटते -रपटते पांव नहीं रपटते,
लटकते – लटकते कब्र में पांव नहीं लटकते,
ढूंढते – ढूंढते सब्र में छांव नहीं ढूंढते
सहते -सहते कुछ नहीं सहते,
रहते – रहते कहीं नहीं रहते,
रिसते – रिसते घाव नहीं रिसते,
मिटते – मिटते चाव नहीं मिटते,
मिंचते – मिंचते आंखे ही नहीं मिंचते,
बेचते – बेचते जमीर ही नहीं बेचते,
पिसते – पिसते मन के भाव नहीं पिसते,
घिसते -घिसते इच्छाओं के लाव नहीं घिसते,
छलकते – छलकते जाम नहीं छलकते,
हिलते – हिलते इंसान नहीं हिलते,
पढ़ते – पढ़ते कुछ नहीं पढ़ते,
लिखते – लिखते कुछ नहीं लिखते,
भरते – भरते आह नहीं भरते,
करते – करते वाह नहीं करते,
टकराते – टकराते कहीं नहीं टकराते,
बचते – बचते कभी नहीं बचते,
चमकते – चमकते कभी नहीं चमकते,
बुझते – बुझते कभी नहीं बुझते,
पाते – पाते कुछ नहीं पाते,
खोते – खोते कुछ नहीं खोते,
होते – होते किसी के नहीं होते,
बिछड़ते – बिछड़ते कभी नहीं बिछड़ते,
मरते – मरते सच्ची मौत नहीं मरते,
जीते – जीते जीवन नहीं जीते।

विजेंद्र दिवाच
Writer, Social Thinker