Sanjiv Kumar Sharma –

आजकल इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग फ़ैशन में है और इसको लेकर अनेक प्रकार की झूठी-सच्ची बातें मीडिया में तैरती रहती हैं, जिनको कुछ स्वयंभू विशेषज्ञ और सिलेब्रिटी भी बढ़ावा देते हैं। कुछ लोग इस तरह के निराधार दावे भी करते हैं कि उन्होंने इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग करते हुए जो मर्जी खाया और उनका वजन कम हो गया या कोई बीमारी दूर हो गयी। वास्तव में यह न कोई जादुई छड़ी है जिसे घुमाने से हमारी सभी समस्याएँ चुटकियों में हल हो जाएँ और हम रातों-रात स्लिम-ट्रिम और सेहतमंद हो जाएँ, और न ही यह कोई बेसिरपैर की बात है जिसकी ओर ध्यान देने की हमें कोई जरूरत ही नहीं है।
इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग का मतलब है भोजन और उपवास को साथ-साथ करना, यानी 12 घंटे भोजन और 12 घंटे उपवास से शुरू करके फिर 16 घंटे उपवास और 8 घंटे के बीच भोजन करना होता है। इससे फायदा यह होता है कि शरीर को पूरे दिन भोजन पचाने का काम नहीं करना होता है, हमारा पाचन बेहतर होता है और शरीर को दूसरे काम करने का मौका मिलता है, इंफ़्लेमेशन कम होती है, बॉडी अपनी हीलिंग कर पाती है।
इतिहास के लंबे हिस्से में मनुष्य 8 घंटे के बीच ही भोजन करता रहा है। उसका शरीर इसके लिए नैसर्गिक रूप से डिज़ाइन है और शरीर को पर्याप्त अवसर मिलता था कि वह सिर्फ चौबीस घंटे भोजन ही न पचाता रहे बल्कि उसे आराम भी मिले, हीलिंग का काम भी हो। लेकिन जैसे-जैसे सभ्यता विकसित हुई, विज्ञान और तकनीकी ने पैर पसारे, भोजन की उपलब्धता बढ़ी, भोजन का व्यापार कई-कई बिलियन डॉलर से भी ऊपर का हो गया तो हम जीवित रहने के लिए भोजन करने से हट कर भोजन के लिए जीवित रहने पर आ गए। पूरे दिन खाने-पीने की चीजों के विज्ञापन चलने लगे, होर्डिंग दिखने लगे और नतीजा यह हुआ कि बिंज ईटिंग, टीवी ईटिंग, इमोशनल ईटिंग, स्ट्रेस ईटिंग, बोरडम ईटिंग और एंटर्टेन्मेंट ईटिंग जैसी अनेक प्रकार की भोजन की शैली विकसित हो गयीं और हम लोग ईटिंग मशीन बन गए। इसके अलावा पैकेटबंद और फ़ैक्टरी में बने हुए भोजन ने आहार के नैसर्गिक गुणों को नष्ट कर दिया और भोजन को एक व्यसन में बदल दिया।
लेकिन यदि हम यह समझ रहे कि सिर्फ इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग का शेड्यूल अपना लें और फिर 8 घंटे के दौरान कुछ भी खाते रहें फिर भी हमारा वजन नियंत्रित होता रहेगा, सेहत बनी रहेगी तो हम खुद को ही मूर्ख बना रहे। यदि कैलोरी ज्यादा जा रही और खर्च कम हो रही साथ ही हमारे शरीर में मोटापा बनाने की प्रवृत्ति बन चुकी है तो फिर चाहे हम दिन भर में सिर्फ 3 घंटे ही कैलोरी से भरा हुआ भोजन करें तब भी हमारा वजन बढ़ता ही जाएगा। साथ ही यदि हम 8 घंटे के दौरान ऐसा भोजन कर रहे हैं जो शरीर के अनुकूल नहीं है, कैलोरी से भरा हुआ है लेकिन पोषक तत्वों की कमी है और तरह-तरह के हानिकारक रसायनों से भरा हुआ है तो इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग करते हुए भी हमारी सेहत नहीं बनने वाली।
जब भी हम इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग शुरू करने का निर्णय लें तो उसकी शुरुआत 12 घंटे की फ़ास्टिंग से करें। यानी यदि रात को 8 बजे डिनर खत्म किया है तो अगले दिन सुबह 8 बजे के बाद ही दिन के खाने-पीने की शुरुआत करें। इसमें भी सबसे अच्छा होगा कि हम सबसे पहले कुछ फल लें। धीरे-धीरे इस 12 घंटे की फ़ास्टिंग अवधि को बढ़ा कर 16 घंटे कर लें, यानी रात को 8 बजे से अगले दिन 12 बजे तक की फ़ास्टिंग रात को 7 बजे से अगले दिन 11 बजे तक की फ़ास्टिंग। इससे शरीर को एकदम आने वाले बदलाव का धक्का नहीं लगेगा और वह आराम से फ़ास्टिंग की अवधि को अपना लेगा।
जब भी हम अपना पहला भोजन लें, अपने उपवास या फ़ास्टिंग को तोड़ें तो कभी भी भारी-भरकम पका हुआ भोजन न करें। पराठा, पूरी, सब्जी, ब्रेड, टोस्ट, डोसे आदि के साथ अपना खाने-पीने की शुरुआत करना इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग के लाभों को लगभग खत्म कर देता है। फल, जूस (कोल्ड प्रेस्ड), स्मूदी (शुगर फ़्री, डेरी फ़्री) या ड्राई फ़्रूट (सूखे फल) से दिन की शुरुआत करने पर शरीर पर अचानक भार नहीं पड़ता और जरूरत के अनुसार पोषक तत्व और ऊर्जा भी मिल जाती है। उसके बाद जब भूख लगे तो अंकुरित अनाज/ दालें और मौसमी सब्जियों से बना सलाद और उसके कुछ देर बाद अपनी रुचि के अनुसार बना पौष्टिक भोजन करें।
एक आम धारणा यह भी है कि डायबिटीज़, एसिडिटी या दिल के मरीजों को इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग नहीं करनी चाहिए। वास्तविकता यह है कि सभी रोगों के मरीज इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग कर सकते हैं बस उनको कुछ सावधानी बरतने और अपने डॉक्टर के सम्पर्क में रहने की जरूरत है। इस तरह के मरीजों के लिए सबसे अच्छा यह है कि वह अपने रोग के अनुसार उपयुक्त सलाद या कम ग्लेसिमिक वैल्यू/ लोड वाले फलों से दिन की शुरुआत करें और 16 घंटे बीत जाने के बाद पका हुआ भोजन करें। डायबिटीज़ के मरीज इस दौरान अपने खून में ग्लूकोज़ का स्तर नापते रहें, कई बार इस तरह से इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग करते हुए खून में ग्लूकोज़ का स्तर आवश्यकता से भी नीचे हो जाता है तो तुरंत कुछ गुड़ आदि लेना जीवनरक्षक साबित होता है। बाद में जब शरीर अभ्यस्त हो जाए तो वह पूरी तरह इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग भी कर सकते हैं।
इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग की शुरुआत करते हुए कुछ सावधानियों की भी जरूरत होती है। कभी भी अचानक 16 घंटे की फ़ास्टिंग शुरू न करें। शरीर वर्षों से जिस रूटीन का अभ्यस्त है अचानक उसे बदलने पर अक्सर समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं। इसलिए इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग की शुरुआत 12 घंटे के उपवास या फ़ास्टिंग से करें और फिर उसे धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 16 घंटे पर ले आएँ। यह ध्यान रखें कि हम किसी भी तरह का शेड्यूल अपनाएँ लेकिन रात्रि में 8 बजे के बाद भोजन करने से परहेज करें। इसके अलावा यदि हम किसी भी बीमारी से जूझ रहें हैं तो इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग शुरू करने से जिस भी पैथी/ पद्धति के विशेषज्ञ से उपचार चल रहा हो उससे परामर्श अवश्य लें।


An author, thinker, translator and a travel-enthusiastic visited almost all states of India in his wheelchair. He had polio paralysis of both the lower limbs at an early age and could not get into the formal system of education, ie schooling. On his own, he started with formal mainstream education at home, and appeared in few exams privately but soon realised about the inadequacy of traditional approach to education and started self-study in his way.

Sanjiv stayed in a room for more than 12 years and spent time in reading books, writing, translating and contemplating on vital issues of human life, society and religion. He has studied literature, philosophy, science, religion and psychology. He started writing during adolescent and continues to write till the date. He has written many articles, poems and stories which got published in various newspapers and magazines. With the area of social media, he also has turned into a prolific writer on the internet.