Sanjiv Kumar Sharma –

सिरदर्द हो रहा है, चलो टेबलेट खा लूं! जुकाम हो गया है, गोली ले आता हूं! घुटने में दर्द है, केमिस्ट से कैप्‍सूल ले आता! कुछ हरारत सी महसूस हो रही, कोई दवा खा लेता। यह सब बातें आम हैं। लोग पर्स और बैग में दवाएं रख कर चल रहे हैं और जब भी कोई जरा सी समस्या हुई तो उनको खा लेते हैं। कई लोग यह भी करते कि मेरे डॉक्टर ने मुझे सॉर्बिट्रेट दी है तो मैं दूसरे को भी हार्ट की कोई समस्या होते ही यही दे देता हूं बिना यह जाने कि यदि दिल की बीमारी के कारण ब्लड प्रेशर कम हो रहा हो तो सॉर्बिट्रेट लेना जानलेवा भी हो सकता है। हम कभी सोचते ही नहीं कि सेल्फ मेडिकेशन या बिना डॉक्टर से पूछे कोई दवा लेना कितना घातक हो सकता है?

सेल्फ मेडिकेशन के खतरे

आज के मेडिकल जगत में एक कहावत चलती है कि यदि साइड इफेक्ट नहीं है तो दवा का कोई इफेक्ट नहीं है, यानी हर दवा जो हमें ठीक करती है वह हम पर कोई न कोई बुरा प्रभाव भी डालती है। एंटी-बायोटिक हमारे पाचन पर बुरा असर डालते हैं और हमारे प्राकृतिक रक्षा तंत्र को कमजोर करते हैं। दर्द नाशक हमारे आमाशय, गुर्दों और लीवर को खराब करते हैं। एंटी-एलर्जिक दवाएं हमारी इम्यूनिटी को प्रभावित करती हैं और शरीर के बाक़ी अंगो को भी खराब करती हैं।

स्टेरॉयड सिर्फ विशेष परिस्थितियों में निश्चित अवधि तक दिए जाते हैं लेकिन लोग खुद से या केमिस्ट से पूछ कर उनको इस्तेमाल करते रहते हैं और शरीर के जरूरी अंग जैसे लीवर, गुर्दे आदि को खराब कर लेते हैं। यदि लंबे समय तक इस्तेमाल की जाएं तो ये दवाएं आंतरिक रक्तस्राव (इंटरनल ब्लीडिंग) या अंगों का पूरी तरह ख़राब होना (ऑर्गन फ़ेल्यर) जैसी स्थिति में भी पहुंचा सकती हैं।

एक और बहुत बड़ा खतरा सेल्फ मेडिकेशन के कारण यह है कि लोग बिना कारण के एंटी बायोटिक ले लेते हैं और उसका कोर्स भी पूरा नहीं करते हैं। इस कारण से बेक्टीरिया में एंटी बायोटिक के लिए प्रतिरोध पैदा हो जाता है और एंटी बायोटिक का असर उन पर कम होता जाता है। एक समय ऐसा आ जाता है कि उस तरह के एंटी बायोटिक का उन पर कोई भी असर नहीं होता और वे सुपर बग बन जाते हैं। इस कारण से एंटी बायोटिक धीरे-धीरे बेकार होते जा रहे हैं और बैक्टीरिया को नियंत्रित कर पाना मुश्किल होता जा रहा है।

प्रतिबंधित दवाएं

खुद से ही दवाओं को खाने से उनके साइड इफेक्ट तो होते ही हैं, कई बार बिना सोचे-समझे प्रतिबंधित दवाओं का सेवन भी कर लिया जाता है। अनेक दवाएं कई देशों में प्रतिबंधित हैं जबकि भारत में उनकी बिक्री होती रहती हैं। जब आप किसी विशेषज्ञ से सलाह लेते हैं तो वह मरीज की सुरक्षा को ध्यान में रख कर ही उन दवाओं को देते हैं। लेकिन सेल्फ मेडिकेशन में उनके खतरों से अनजान मरीज उनको लेते रहते हैं। निमेसुलाइड, एनलजिन और पिओजिलेटेजोन आदि कुछ दवाएं अनेक देशों में प्रतिबंधित हैं लेकिन भारत में वह उपलब्ध हैं।

सेल्फ मेडिकेशन के मामले

एक शोध के मुताबिक शहरी इलाक़ों में 37% और ग्रामीण इलाक़ों में 17% तक मामलों में लोग बिना डॉक्टर के परामर्श के खुद ही दवाएं ले लेते हैं। सबसे ज़्यादा खुद से ली जाने वाली दवाएं दर्दनाशक (पैरासिटामाल और एनएसएआईडी), एंटी एलर्जिक़ और बुखार उतारने की होती हैं। यह भी अक्सर देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा सेल्फ मेडिकेशन करती हैं। यह बात भी आंकड़ों से सामने आयी है कि हाई स्कूल या उससे ज्यादा पढ़े लोग ही सेल्फ मेडिकेशन करने में आगे हैं।

बिना विशेषज्ञ सलाह के आयुर्वेद और घरेलू नुस्खों का खतरा

सेल्फ मेडिकेशन के मामले सबसे ज्यादा एलोपैथिक दवाओं के होते हैं लेकिन सोशल मीडिया, आयुर्वेद/ नेचुरल इलाज के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाने वाले इंफ़्लूएंसर और अनेक फर्जी कंपनियों के प्रचार के प्रभाव से लोग बिना किसी विशेषज्ञ की सलाह के अनेक तरह के चूरन, चटनी, काढ़े, गोलियां और धुएं ले रहे हैं और इस कारण से गंभीर बीमारियों का शिकार होने के मामले सामने आ रहे हैं, जैसे लिवर या गुर्दे खराब हो जाना। इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता इस भ्रम में लोग इन दवाओं का अनाप-शनाप प्रयोग करते रहते हैं और खुद ही मुसीबत को आमंत्रित करते हैं।

ओवर द काउंटर ड्रग आपात स्थिति में पहले से ही किसी विशेषज्ञ से पूछ कर लेने के लिए होती हैं। बिना किसी डॉक्टर की सलाह के उनको लेते रहना अपने पांव पर खुद ही कुल्हाड़ी मारे जैसा है। सेल्फ मेडिकेशन से बचें और अपने शरीर का ख़्याल रखें।


An author, thinker, translator and a travel-enthusiastic visited almost all states of India in his wheelchair. He had polio paralysis of both the lower limbs at an early age and could not get into the formal system of education, ie schooling. On his own, he started with formal mainstream education at home, and appeared in few exams privately but soon realised about the inadequacy of traditional approach to education and started self-study in his way.

Sanjiv stayed in a room for more than 12 years and spent time in reading books, writing, translating and contemplating on vital issues of human life, society and religion. He has studied literature, philosophy, science, religion and psychology. He started writing during adolescent and continues to write till the date. He has written many articles, poems and stories which got published in various newspapers and magazines. With the area of social media, he also has turned into a prolific writer on the internet.