भारतीय समाज में जब तक सेक्स जब तक पशु वाले लेवल तक की स्वछंदता पर कुछ समय न जिया जाए तब तक कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि सेक्स दमित होने का उस पर प्रभाव नहीं है। और यह चीज व्यवहारिक रूप से अब सम्भव भी नहीं।
लेकिन यह देख लेना ही कि सेक्सुअल सप्रेशन है यह ही काफी हद तक इस मैकेनिज्म को समझाने में मदद कर देता है।
हमें सबसे पहले तो यह समझना होगा कि सेक्सुअल कुंठा क्या है और क्या नहीं है।
मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी मनुष्य का भूख लगना और प्यास लगना है। खाना पीना हमें रोज ही चाहिए, टेस्ट आदि को लेकर भी गहरी आदतें होती है।
यह पूरा जीवन समझने से व्यक्ति को रोक देती है बांध देती है लेकिन खाने की इच्छा या पीने की इच्छा को लेकर कुंठा नहीं पनपती।
भूख लगी खाना नहीं मिला भूखे रह गए इसे लेकर भी कुंठा नहीं पनपती।
किसी स्पेसिफिक खाने की चीज को मन किया तब भी कोई अपराध बोध हम मन में नहीं लाते की यह खाने का मन क्यों किया।
और बहुत बार बहुत सी चीजें हम जानबूझकर भी नहीं खाते मन करते हुए भी कि इससे हमारा सिस्टम गड़बड़ा सकता।
यह भी कोई कुंठा या दमित होने का कारण नहीं बनती।
वैसे ही यौन इच्छा कोई कुंठा नहीं।
यौन इच्छा क्यों हुई , यह नहीं होनी चाहिए यह कुंठा है फिर इस कुंठाओं के अलग अलग परिणाम हमारे जीवन में देखने को मिलते है।
यौन आकर्षण किसी के भी प्रति हो सकता चाहे वो रिश्ते में कुछ भी लगता हो। वैसे ही जैसे खाने का कुछ भी मन कर सकता।
यह भी यौन कुंठा नहीं।
यौन कुंठा यह कि यह पाप है , ऐसा सोच भी कैसे सकते आदि आदि।
किसी के साथ हेल्दी रिलेशन में हो तब भी यह इच्छा आ सकती लेकिन यह अपने प्रॉपर प्लेस पर भी आ जाती है अपने आप।
और जरूरी थोड़े सब कुछ ही खाना है जो मन किया जहां से सिस्टम गड़बड़ा सकता जीवन का वह नहीं खाना सिंपल डिसीजन बस।
दमित(सेक्सुअल डिमांड पूरा न होना) होने को गलत ही नहीं सोचना है हर बार कई बार यह अच्छा भी हो सकता। इसे बस यह देखना है कि बहुत बार सप्रेस होने से कई परेशानियों से बच भी जाते।
हमारा जीवन इतना स्प्रेसड है , डिप्रेस्ड है, अकेलापन है उसमें फिर सेक्स सबसे आसान विकल्प दिखता है, यह हमें सजगता से देखना है कि अच्छा खाना खाना है कि बुरा खाना खाना है।
सेक्स जितना प्रेम और सौहार्द, एक दूसरे की समझ के साथ हो उतना आनन्द। दूसरे को खुश करने का भाव इसमें जितना ज्यादा उतना ही अच्छा सेक्स उतना ही बेहतर रिश्ता होने की संभावना।
यदि किसी व्यक्ति को सर दर्द है तो दो अप्रोच है एक तो सर दर्द को व्यक्ति सबसे पहले बीमारी मान ले तो वो फिर देखेगा कि सर दर्द कम सोने की वजह से है, या फिर ऑफिस में ओवर लोड की वजह से है या गलत खान पान की वजह से तो नहीं या गर्मी सर्दी की वजह से है तब वो दवाई लेगा या उसके जो कारण है उन पर भी काम करेगा।
लेकिन व्यक्ति सर दर्द को प्रॉब्लम न माने उसे खास  समझने लगे तो वो कहेगा कि तुम क्या जानो ऑफिस में ओवर लोड लेना, चार बच्चे पालना तुम क्या जानो, कम सोना कोई मजाक बात थोड़े न है वो उस चीज के लिए हजार तार हजार तर्क गढ़ लेगा।
सेक्सुअल गिल्ट या सेक्स के बाद खराब लगना भी ऐसा ही है और यह सामाजिक कल्चर , बचपन से जैसा ब्रेन वाश कर दिया उन सब के कारण से आता है।
सेक्सुअल गिल्ट भी बहुत तरीके के समाज दे देता है खासकर लड़कियों को सेक्स की डिजायर से ही गिल्ट महसूस करना कि मैं अच्छी लड़की नहीं, शादी के बिना सेक्स कर लेने का गिल्ट। 
ऐसे ही बहुत सारे गिल्ट लड़कियों में भर दिये जाते है।
असेक्सुअल्टी की तरफ भी यह धकेल देता है।
लेकिन हम यह एक दम साफ साफ मान ले कि सेक्सुअल गिल्ट किसी एक्ट की वजह से नहीं बल्कि अपने आप में एक अलग बीमारी है या हमारी कंडीशनिंग का नतीजा है तो सारी समस्या यहीं समाप्त है इसके बाद सेक्स किया और गिल्ट आया भी तो मुझे पता है कि ब्रेन को इतना ज्यादा ट्रेंड बचपन से कर दिया गया है यह आयेगा ही मेरे साथ तो फिर इसे बहुत सीरियस होकर आप नहीं लोगे।
लेकिन अगर रिग्रेट को प्रॉब्लम नहीं मानते है तो हम पूरा जीवन जहां तहां तार जोड़ते रहेंगे कि
शादी/रिलेशन के बिना करने से गिल्ट हो रहा।
सामने वाले को तथाकथित प्यार नहीं इसलिये गिल्ट हो रहा
मुझे तथाकथित प्यार नहीं इसलिये हो रहा।
खराब लग रहा तो इसका मतलब यह है वह है।
ऐसी अनगिनत चीजे माइंड बनाता रहेगा।
और स्त्री इसी मानसिक ट्रेनिंग या गुलामी के कारण जैसा सोसायटी चाहती उन चीजों में फंसती जाती है।
रिलेशन हेल्दी अनहेल्दी हो सकते उनका बुरा लगना अलग चीज है। लेकिन xyz किसी के भी साथ सेक्स एक दम अलग।
यह आपकी चॉइस कि आपके लिए इसका आर्डर क्या है जो आपकी लाइफ भी स्मूथ या जैसी आप चाहते वैसी चलती रहे।
गिल्ट फैक्टर का इनमें से किसी से भी कोई लेना देना नहीं।