आदम- हिंदू राष्ट्र की कल्पना में कुछ आगे भी बताइए , स्त्रियाँ दिक्कत खड़ी कर सकती है .
देवरस – देखो हम उन्हें सदियों से देवी बना के कुंठित करते आ रहे है उन्हें तो भनक भी नहीं पड़ेगी की माजरा चल क्या रहा है
आदम – वो तो सही है लेकिन उनका क्या जो बाहर निकलने लगी है, पढने लिखने लगी है, हमारे रीति रिवाजों, संस्कृति वाले प्रपंचो को समझने लगी है .
देवरस – उनका इलाज तो हमने चुड़ैल, कुल्टा आदि घोषित कर के बाँध रखा है न, पूरे परिवार की इज्जत भी इनसे ही बाँध रखी है. आज भी यही काम आता है. और इन सब में तो समाज भी बढ़ चढ़ के हिस्सा लेता है. पूरा बंदोबस्त है निकलेंगी किधर को .
आदम – लेकिन
देवरस – लेकिन वेकिन छोड़ो देखो कपड़ो के मामले में भी हमने समझा दिया न की लोग घूरते है वो बात अलग है की घूरते भी हम ही है, घर से बाहर निकलने के मामले में भी हम माहौल बना रहे है . रात में निकलती है तो देखो क्या क्या हो जाता है बेचारियों के साथ और देखो कुछ भी हो जाये हमारे बनाये हुए ईश्वर के विरोध में जाने की हिम्मत इनमे नहीं है उसका डर ही बहुत है. बाकी के दिमाग पर तो हमारा कब्ज़ा है ही है वो तो हमारा साथ ही देंगी न
आदम – समझ गया गुरु संस्कृति की स्थापना हो के रहेगी 


Nishant Rana 
Social thinker, writer and journalist. 
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance.