जैसे ही स्वतंत्रता की बात आती है, सारी जिम्मेदारीं हमारे ऊपर आ जाती है। जीवन को सहज, सरल, सार्थकता की और बढ़ने के पहले ही कदम के संघर्ष को भांपने पर थोड़ी देर के लिए बाहर हुई गर्दन वापिस रेत में धँसा ली जाती है।  लोगों को अपनी कंडीशनिंग से बाहर निकलने के डर से जो कम्पन्न पैदा होता है वह रूह तक महसूस किया जाता है ।


जीवन के सबसे अच्छे पल जीवन की अनिश्चितता में होते हैं इन्हीं पलों में हम वास्तव में सीख रहें होते हैं।
लेकिन हमारा ब्रेन जीवन और रिश्तों में सिक्योर होना चाहता है, जो मिल रहा उसे लगातार रिपीट करना चाहते है, उसे किसी बात से जो सुख मिला उसे खोना नहीं चाहते। जबकि प्रकृति, जीवन, रिश्ते, व्यक्ति हर पल नए हैं। जैसे ही हम किसी अनुभव, सुख के प्रति लगातार निश्चिन्तता चाहने लगते है उसी समय से वह जड़ होकर मरना शुरू हो जाता है। तभी हम अपना सारा जीवन कुछ आदतों, सुखों को दोहराने की फँसावट और झुंझलाहट में खत्म कर लेते है। कानून, धर्म, संविधान आदि बंदिशों का उदय भी तभी ही होता है।
हमारे सारे प्रयास अनिश्चितताओं को खत्म करने के होते है और जो जीवन या किसी रिश्ते की खूबसूरती का मूल था, जहां हम कह सकते कि प्रेम आपको छूता है लेकिन अज्ञात के अपने डर और ब्रेन के खुद को सुरक्षित करने की आदत के कारण उसे स्वयं ही खत्म कर देते है।
जब आप अनिश्चितता के प्रति आश्वस्त होते है तभी आप, आप का जीवन, रिश्तें एक नए आयाम, सीखने, स्वतंत्रता की ओर बढ़ते हैं।

जब सिस्टम की चाकरी में जीवन पिस रहा हो, उससे बाहर निकलने के लिए लड़ना, संघर्ष करना दूर सोचना भी दूभर हो तो फ़र्शटेशन निकालने के लिए सबसे आसान टारगेट और तरीके ही बचते है अब उसकी जद में फेसबुक, ट्विटर, कैब ड्राइवर, डिलीवरी ब्यॉय, कोई पत्रकार, डॉक्टर, आप मैं कोई भी आ सकता है। इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता आप किस पक्ष के हो।
किसी व्यक्ति को ईश्वरीय मान सारी परेशानियों से मुक्ति दिलाने वाला मान लेना भी इसका ही दूसरा पहलू है।

यह वास्तव में ख़ूबसूरत बात है जब कोई व्यक्ति अपने अंदर घृणा, हिंसा, असुरक्षा, खालीपन, चिड़चिड़ाहट को देख पाता है भले ही वह इन से पर जाने में सफल न रहे, इन सब की वजह से अपने जीवन में और मानसिक परेशानियों को झेल रहा होता है लेकिन इन्हें ग्लोरीफाई नहीं करता, अपने आपको इन सब के लिए जस्टिफाई नहीं करता, इन्हें छिपाने की चालाकियां नहीं करता।
लेकिन इससे बदसूरत भी शायद कोई बात हो जब कोई व्यक्ति यहीं सब कारक जो व्यक्ति का जीवन बदबूदार बना देते है, मानसिक परेशानियों का घर बना देते है, बात बात में बातें आहत करने लग जाती है या सूक्ष्म रूप से चालाकी से अपना बचाव सीख जाता है, वह यहीं सब असुरक्षा, हिंसा, मानसिक उत्पीड़न अपने बच्चों को भी सौपने लगता है।



Nishant Rana 
Social thinker, writer and journalist. 
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance.