1
हमारा देश प्राचीन काल से आज तक सोने की चिड़िया ही बना हुआ है। कुछ के लिए यह कम समय के लिए सोने की चिड़िया रहा कुछ के लिए तब से लेकर आजतक सोने की चिड़िया बना हुआ है।

राजतन्त्र में यह राजाओ, जमीदारों, मंत्रियो के लिए सोने की चिड़िया रहा।
उसके बाद अंग्रेजो के लिए सोने की चिड़िया रहा।
आया लोकतंत्र तो नेताओं और नौकरशाहों के लिए सोने की चिड़िया बन गया।
धर्म के ठेकेदारों, धार्मिक स्थलों, चाटुकारों, दलालों के लिए सोने की चिड़ियाँ वाला काल कभी खत्म नहीं हुआ।
बहनों के सापेक्ष भाइयों के लिए, पत्नियों के सापेक्ष पतियों के लिए, मजदूरों के सापेक्ष मालिकों के लिए सोने की चिड़ियाँ ही तो रहा है।
मेहनकश लोगों का कमाया हुआ अलग अलग तरीको से हड़पना, कब्जाना ही स्वार्थी लोगों के लिए ‘सोने की चिड़िया’ हुआ।

2
दुःख स्मृति में लिखा होता है फलाने जी स्वर्ग सिधार गये। जब एड्रेस पता ही है की कहाँ गए है और स्वर्ग तो सबसे अच्छी जगह माना जाता है तब भी दुःख स्मृति, सुख की बात होनी चाहिए ये तो।

3
आदमी टिकट ले कर मनोरंजन के लिए जाता है, आराम से सीट पर पसरता है । अब तुम चला दो राष्ट्रगान वहां पर आदमी एक मिनट तो यही सोचता रह जायेगा की माजरा क्या है!

नोट 1 – राष्ट्रगान में खड़े होना या न होना क़ानूनी रूप से अपनी मर्जी है , हाँ राष्ट्रगान चलते हुए व्यवधान उत्पन्न करना क़ानूनी रूप से गलत है।
नोट 2 – गंगा में नहाने से पाप धुल जाते है । दूसरो को गरियाने से राष्ट्रभक्ति साबित हो जाती है।


Nishant Rana 
Social thinker, writer and journalist. 
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance.