जो बात यहां से शुरू होती है की ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय पैदा हुए आदि आदि । इतने बेसिरपैर की काल्पनिक बात के आगे भी किसी पात्र को जानना समझना रह जाता है क्या ? किसी भी धर्म को वैज्ञानिक फैक्ट से ज़माने का चुतियापा मुझे मत समझाना , नागराज से ले कर स्पाइडरमैन, कैप्टन अमेरिका तक सब वैज्ञानिक रूप से ही जस्टिफाई है, लग जाइये इन्हें भी कोई अवतार या धर्म मानने । इनके तो वीडियो भी उपलब्ध है 

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भारतीय जन हमेशा से अवतार गढ़ता आया, उन्हें पूजता आया और अंत में खुद को ठगा महसूस करता आया। कभी दैवीय अवतार कभी राजनैतिक अवतार, कभी विकास पुरुष अवतार, कभी ईमानदारी के अवतार। बार बार ठगे जाने के बाद भी आने वाली पीढ़ियों में अवतारों के लिए वही बीज रोपित करता आया जिनसे खुद चोट खायी।

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लोकनायक लोगों में नेतृत्व क्षमता, मनुष्यता के बीज बोते है समय समय पर बिना नफे नुकसान के अपने ही साथियों के साथ वैचारिक लड़ाइयाँ भी लड़नी पड़ती है । खुद की दृष्टि भले ही कितनी भी सही हो थोपने से हमेशा बचते हुए चलते है।

जबकि विकृत मानसिकता के लोग केवल और केवल कुंठित मानसिकता को ही बढ़ावा देते है, कट्टर होते है , नेतृत्व क्षमता विकसित करने की बजाय अवतार बनते है , ईश्वर बनते है, कुंठाओं को दूर करने की बजाय उन्हें कट्टर समर्थन में बदलते है।
किसी व्यक्ति का सम्मान करने और कट्टर समर्थक होने में अंतर तो होता ही है, सामाजिक दर्शन , विचारक और मिथ्या की पहचान इतनी तो मुश्किल न थी।

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समाज दो तरीकों से आगे बढ़ता है – एक जीवन, मूल्यों आदि को सीखते हुए ईमानदारी से अनुभव साझा करते हुए।

दूसरा सत्ता, प्रसिद्धि पाने, पीढ़ियों तक भोग चलता रहे के लिए धूर्तता से अवतार, झूठी कहानियां , लोक परलोक काल्पनिक भविष्य गढ़ते हुए। हमें कैसे आगे बढ़ना है यह स्वयं हमें ही तय करना होगा 

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आंबेडकर साहब किस की वजह से लिखे पढ़े ?

यह बात कहने का मतलब बस इतना है कि बाबा साहब का सम्मान कीजिये , संघर्ष से प्रेरणा लीजिए लेकिन उन्हें अवतार बना कर कमजोर मत करिए। बाबा साहेब का अवतार की तरह पूजना रिवर्स ब्राह्मणीकरण को ही बढ़ावा देना है, उसे मजबूत करना है । प्रतिक्रिया में हिंसक हो जाना वैसे ही नफरत करना शायद किसी व्यक्ति की मज़बूरी हो जाए लेकिन यह मज़बूरी भी किसी समाज को सही रास्ते पर नहीं ला सकती। कम से कम सामाजिक आंदोलनों को तो बिलकुल नहीं। कानून आदि भी किसी समाज को लंबे समय तक बाँध कर नहीं रख सकते जब तक की उस समाज में स्व अनुशाशन न हो, कानून , संविधान आदि किसी समाज की मज़बूरी ही हो सकते है किसी समस्या का हल नहीं हो सकते। हमें चाहिए की मजबूरियों के महिमामंडन से बच कर अपने अंदर झांके। जब हम अपने शोषण का विरोध कर रहे होते है तब जरुरी है कि उस विरोध केवल हमारा भला न हो कर समूची मानवता का भला हो । अब वह रास्ता चाहे बुद्ध दिखाए, बाबा साहेब दिखाए, गांधी दिखाएं या प्रेम के लिए जीने वाला कोई अंजान दिखाएं।


Nishant Rana 
Social thinker, writer and journalist. 
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance.