विजेंद्र दिवाच
स्कूलों में 8th तक फेल नहीं किया।सरकारी स्कूल में सबसे ज्यादा स्टूडेंट्स 9th में हलाल होते हैं। सभी कक्षाओं का पहला लिखित टेस्ट 15 अगस्त के आसपास होता है।इस टेस्ट में कम नंबर आने वाले 9th कक्षा के कुछ स्टूडेंट्स को बताया जाता है कि आप इस साल फेल होंगे।क्योंकि आपको कुछ नहीं आता और हम आपको पास करके अपने 10th क्लास के बोर्ड का रिजल्ट खराब नहीं कर सकते।
फेल करने वाले बच्चों की लिस्ट बना ली जाती है।वह भी अगस्त या सितंबर में।फिर उन बच्चों की मानसिक स्थिति का क्या?इस बात से किसी को कोई मतलब नहीं।सबको अपना रिजल्ट बढ़िया रखना है।ताकि 15 अगस्त और 26 जनवरी पर जब गांव स्कूल में इकट्ठा हो तो प्रिंसिपल और सभी टीचर बड़े गर्व से कह सकें कि देखो जी हमने कितनी मेहनत की है, आपके गांव के सभी बच्चों को बोर्ड कक्षाओं में पास करा दिया।हमने अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं रखी।गांव वाले ताली बजाए और साफा पहनाकर सम्मानित करें।
जिन फेल करने वाले बच्चों की लिस्ट बनाई जाती है उनको दूसरे बच्चे पूरी साल इसी बात पर चिड़ाते रहते हैं कि अरे तुम तो फेल होने वाले हो।छोटी – छोटी बातों पर टीचर भी इन बच्चों को ही टॉर्चर करते हैं कि तुम तो फेल होगे ही किसी दूसरे को भी क्यों बर्बाद कर रहे हो?
यदि आपने एक बच्चे को अगस्त या फिर सितम्बर में ही पहले टेस्ट में कम नंबर आने पर बता दिया कि तुम तो फेल होने वाले हो।अब आपके पास समय सितम्बर के बाद अक्टूबर,नवंबर,दिसंबर,जनवरी,फरवरी और मार्च।अप्रैल में एग्जाम मान लीजिए।फिर भी छह महीने हैं।डेढ़ महीने की छुट्टियां निकाल दीजिए।बचे साढ़े चार महीने।
तो हे विद्वान गुरुजनों!आपसे एक बात पूछनी है कि आपने जिस बच्चे को साढ़े चार महीने में 9th कक्षा पास करने लायक नहीं बना सके तो फेल करने के बाद अगले साल के नौ – दस महीनों में आपके पास ऐसा क्या मॉडल होगा कि आपने जिस बच्चे को फेल किया है वह पास हो ही जायेगा?क्या मॉडल है आपके पास?यदि है तो आपने उस मॉडल को साढ़े चार महीने क्यों काम में नहीं लिया?क्या पता बच्चा पास ही हो जाता।
फेल करने वाली लिस्ट में नाम वाला बच्चा दो दिन तक खाना नहीं खा पाता है तो घर वाले भी कहते हैं कि फेल ही तो कर रहे हैं।गुरुजी कुछ अच्छा ही तो कर रहे हैं।गुरुजी खुद ये बात बच्चों से कहते हैं कि तुम्हारी भलाई के लिए ही तुम्हें फेल किया जा रहा है।ताकि आगे कोई दिक्कत ना आए।यहीं सुधार हो जाए तो बहुत अच्छा है।फिर वही बात कि क्या मॉडल है आपके पास सुधार का।
सीधी सी बात है कि आपके पास ऐसा कोई मॉडल नहीं है। आप शिक्षा के घिसे – पीटे ढरे पर चल रहे हैं। हां आपकी कमाई और जीवनशैली जरूर मॉर्डन हो गई है।सिर्फ बाजारू हिसाब से।
सरकारी स्कूल में आठवीं तक के बहुत से बच्चों को किताब तक नहीं पढ़नी आती।छोटे शब्दों को समझने में बहुत दिक्कत होती है।ऐसा नहीं कि किताब पढ़ना नहीं सीखा पा रहें हैं तो कुछ और बहुत ही अच्छी क्रिएटिव एक्टिविटीज में बच्चों को लगा रहे हैं।नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है।ना ही ऐसा कि बच्चा एकदम स्वतंत्र है कि जो जी में आए करे।ऐसी आजादी यदि दे दी जाए तो बहुत ही बढ़िया।लेकिन कुछ ना सीखाकर भी बच्चों का शोषण किया जाता है कि तुम्हें कुछ नहीं आता।तुम एकदम ढपोर शंख हो।नालायक हो।बहुत सी हिंसा की जाती है और वह हिंसा दिखाई नहीं देती क्योंकि उसपर सुधार का मुलम्मा जो चढ़ा दिया जाता है।
नौवीं में सिर्फ और सिर्फ इसलिए फेल किया जाता है कि दसवीं बोर्ड क्लास का रिजल्ट सौ प्रतिशत रहे।ताकि गुरुजनों की महानता भी बनी रहे और कहीं सरकार या प्रशासन पूछे तो अपना बेस्ट काम दिखा सके।वैसे सरकार और प्रशासन पूछता नहीं है।फिर भी बेस्ट टीचर अवार्ड मिलता रहे और फालतू मे कहीं सुख सुविधाओं से वंचित जगह तबादला ना हो जाए।
तो सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे के लिए सरकारी स्कूल में 9th कक्षा में फेल किया जाता है।यदि बच्चों की सच में फिक्र,चिंता होती तो जिस दिन स्कूल में बच्चा जाता है उस दिन से हर पल ध्यान दिया जाता।एक गरीब अभिभावक अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजता है।अपने बच्चे को सौंपता है कि लीजिए मास्टर जी अब आप जाने और आपका काम।कितना विश्वास होता है उनको मास्टर जी पर।उनको लगता है अब गुरुजी सब संभाल लेंगे।लेकिन इधर गुरुजी सिर्फ अपने स्वार्थ साध रहे होते हैं।किसी का विश्वास टूटे,किसी बच्चे का बचपन लूटे,हिंसा में मन के मासूम तार टूटे गुरुजी को कोई मतलब नहीं है।जिस भाव के साथ विश्वास किया जाता है गुरुजी उस भाव को ही नहीं देख पाते हैं।
सभी स्कूल वाले दो – तीन और प्राइवेट स्कूलों के पास कुछ ज्यादा संख्या में कुछ होशियार स्टूडेंट्स को एक दो महीने में ही चुन लिया जाता है और सिर्फ उनको अच्छे से रटाया जाता है ताकि ज्यादा मार्क्स ला सकें।घर वाले भी रट्टू बनने पर खुश हो रहे होते हैं कि हमारा बच्चा कितना ब्रिलियंट है।किसी को कोई मतलब नहीं कि हम बच्चों के साथ कितनी गहरी हिंसा कर रहे हैं?सिर्फ अपनी कुंठाएं शांत होनी चाहिए बस। चाहे माता – पिता हो,टीचर हो या समाज हो।कुंठाओं को तृप्त करने में लगे हैं सब।
इन रट्टू ब्रिलियंट बच्चों के बड़े – बड़े पोस्टर और बैनर लगाकर स्कूल वाले बहुत से पेरेंट्स के दिमाग का ब्रेनवास करने का काम करते हैं।मेरिट ही मेरिट,मेरिट वाला स्कूल,राज्य स्तर पर इतनी मेरिट,जिला स्तर पर इतनी मेरिट और तहसील स्तर पर इतनी मेरिट।इन मेरिट के चक्कर में पेरेंट्स जरूर घनचक्कर बन जाते हैं।और पता भी नहीं चलता कि बच्चे को बाजारू बनाने के लिए उसे शिक्षा बाजार के हिंसक लोगों को सौंप देते है वो भी बड़े जागरूक अभिभावक बनकर।फिर अपनी जागरूकता का धौंस उनपर जमाएंगे और उनको कोसेंगे जो बाजारू बनने से बचने भर की कोशिश करते हैं।अपने बच्चों को रट्टू वाला ब्रिलियंट बनाने के लिए भारी भरकम फीस चुकाएंगे।अब बच्चे का क्या?उसको तो झेलना है ये सब,क्योंकि महान माता – पिता कुछ त्याग की कहानी सुनाकर फीस से जोड़ते हैं और फिर विद्वान गुरुजन तो हैं ही दिमाग की धुलाई करने के लिए।कंडीशनिंग कहां टूटने देने ऐसे आचार्य जी।
सभी टीचर्स से नम्र निवेदन – –
अपना रिजल्ट बढ़िया रखना छोड़िए।दुनिया में शिक्षा पर कितने शानदार प्रयोग हो रहे हैं उनको समझने के प्रयास कीजिए।शिक्षा का मतलब समझिए।इतनी मोटी तनख्वाह जिन बच्चों को पढ़ाने के नाम पर पाते हैं उनके साथ हिंसा,अश्लीलता और दुर्व्यवहार करना छोड़िए।उनको गंभीरता से शिक्षा के असली मायनों से रूबरू करवाने की अपनी जो जिम्मेदारी है उसको निभाइए।बच्चों को सहज और सरल वातावरण के साथ शिक्षा से जोड़िए।बच्चों की नैसर्गिकता को खत्म ना करके उनको बेहतरीन नागरिक बनाने की दिशा में काम कीजिए।गौतम बुद्ध,विवेकानंद और अन्य महापुरुषों के कोटेशन बोलकर अपनी फर्जी विद्वता बच्चों पर मत थोपिए।शिक्षा के बाजारूपन में अपने को धकेलने से रोकिए।ये जो आज थोथा उन्माद फैल रहा है इनमें आपके द्वारा दी गई शिक्षा का भी हाथ है,तो बच्चों को थोथे उन्मादी बनने से बचाइए।टीचर हैं तो टीचर की जिम्मेदारी बड़ी गंभीरता से निभाइए और अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकते हैं तो पढ़ाना छोड़कर कुछ भी कर लीजिए।लेकिन टीचर के नाम पर मोटी तनख्वाह के लिए टीचर मत रहिए।आगे क्या कहूं आप खुद टीचर हैं आप अपनी कमियां मुझसे बेहतर जानते हैं,अपनी कुंठाओं को साइड में करके ईमानदारी से खुद को देखिए समझिए।

विजेंद्र दिवाच
Writer, Social Thinker