1

कोराना को लेकर कुछ बातें जेहन में बैठा लेनी चाहिए –
कोराना का अभी तक कोई इलाज नहीं है, न देशी नुस्खों से कोराना ठीक होना न अन्य किसी दवाई से।

यह लोगों से लोगों में
फैलना है एक बार फैलना शुरू तब न शहरों में फैलने से रुकना न गांवों में।

हम जो कर सकते है वह है इसके फैलने की गति को कम करना। इसके लिए ही कम से कम लोगों से मिलना, हाथों की साफ-सफाई, छींकते समय कोहनी का प्रयोग करना आदि है।

महामारियां मिथक नही है। न ही इनसे होने वाली मौतें एक्सिडेंटल केस जैसी है, प्रदूषण या अन्य घातक बीमारियां जैसी नहीं है। अन्य बीमारियों के इलाज है या व्यक्ति धीमी गति से मौत की तरफ बढ़ता है।
महामारियों में वायरस तेजी से लोगों में फैलता है, लोग तेजी से बीमार होते है आपका इम्यून सिस्टम आपको बचा ले गया तो ले गया बाकी इसका उपाय किसी के पास नहीं होता है। कम से कम जब तक वैक्सीन खोज नही ली जाती तब तक तो कोई उपाय नहीं होता है।

सामान्य फ्लू और कोराना वायरस में हमें अंतर समझना होगा। बाकी तरह एक वायरस जब हमारे शरीर पर अटैक करते है या जब हम अनेकों अनेक वायरस कैरी करते है तब शरीर उस तरह की चीजें झेल चुका होता है और मेडिकल साइंस उन सब से जूझने के तरीके खोज चुका होता है।
लेकिन यदि कोराना का वायरस हमारे शरीर में जाता है तब हम नही कह सकते कि शरीर उससे लड़ने लायक है या नहीं साथ के साथ मेडिकल साइंस, देशी इलाज/नुस्खा, धार्मिक गुरु, पूजा पाठ/इबादत आदि आदि कोई भी किसी भी प्रकार से आपके इम्यून सिस्टम की इससे लड़ने में कोई मदद अभी तक तो नहीं करने वाला है।
हमारा इम्यून सिस्टम यदि कोराना से लड़ कर जीत भी जाता है तब भी हम तब तक सोशल गेदरिंग के माध्यम से इसे कई लोगों तक पहुँचा कर उनकी जान जोखिम में डालने का काम कर रहे होते है।
सरकारें , बाजार जैसा समाज होता है वैसा ही फायदा उठाने के इस तरह की महामारियों में उठाने का सोचते ही है लेकिन इससे खतरा अवास्तविक नहीं हो जाता है। बल्की लोगों को जान माल का और अधिक भुगतान करना होता है।

लोगों को आपस में मिलना जुलना कम से कम करना होगा। वायरस के फैलने की गति को कम से कम सभी उपायों से करना होगा। इसका दवाब सरकारों पर भी बनाना होगा।

सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे हालात से निपटने की पूरी तैयारी है एवं किसी भी प्रकार की समस्या लोगों को रहन सहन खाने पीने की नही है उसके क्या उपाय है यह लोगों को बताना चाहिए ताकी आपसी सहयोग कम्युनिकेशन से आपात स्थिति से निबटा जा सके।

लाभ, राजनैतिक पूर्वाग्रहों, मसखरेपन, असंवेदनशील ज्ञान से ऊपर उठना होगा। आपसी सहयोग और कम्युनिकेशन जितना खराब होगा उतनी ही स्थिति खराब होती जानी है।

2-

कोराना वायरस (COVID-19) का खतरा तब तक है जब तक इसकी वैक्सीन बन कर तैयार नहीं हो जाती, गांव-गांव तक वैक्सीन पहुँच नहीं जाती। तब तक इससे खतरा बना रहेगा।
यह सब होने में 6 महीने से 1 साल तक लग सकता है। एक दिन कर्फ्यू का पालन करने से वायरस के फैलने की गति कम होनी है वायरस का खतरा दूर नहीं होना है।
जब तक वायरस का खतरा है वायरस के फैलने की गति को कम करने के उपाय अपनाए रखें।
सतर्कता में ढील न बरतें।

सरकार को लोगों के राशन पानी की चिंताओं से दूर करने के उपाय करने चाहिए।
भारत में हालत बिगड़ी तो किसी से सम्भाले नहीं सम्भलेगी।
भारत पहले ही इस मामले में बहुत लापरवाही बरत चुका है। इस लापरवाही के लिए हम और सरकार दोनों जिम्मेदार है।
सरकार वायरस टेस्ट की व्यवस्था भी ठीक से नहीं कर पाई।

जब टेस्ट ही न के बराबर हुए है तो जाहिर सी बात है कोराना संक्रमित लोगों की संख्या का आंकड़ा भी न के बराबर ही आना है। लेकिन यह संख्या काफी बड़ी हो सकती है और केस बिगड़ने वाले हालातों के सामने हमारे पास देखते रहने के सिवा कुछ नहीं होगा।

इतनी बड़ी जनसंख्या में प्रथम उपचार की बात भी भूल ही जाइये।

सरकार का पक्ष और विपक्ष दोनों भूल कर जनता को आपस में सहयोग करना होगा। सरकार पर बेसिक व्यवस्था ठीक करने का दवाब तो बनाना ही होगा।

तब तक निरंतर बिना हवाबाजी में आए, बिना लापरवाही बरते कोराना वायरस फैलने से बचने के जितने नियम है, उन्हें स्वयं से पालन करते रहना होगा।

3

दो स्थितियां है –
यह दौर कुछ समय चलेगा, मनुष्य जल्दी ही इस का भी कोई इलाज ढूंढ लेगा और हम सभी फिर से अपनी ढर्रे वाली ज़िंदगी में वापिस लौट जाने। उम्मीद करते है कि ऐसा ही हो।

क्योंकि दूसरी स्थिति यह है जिसमें ऑप्टिमिस्टिक अप्रोच तो है लेकिन इन परिस्थतियों की वजह से उस तक पहुँचने के रास्ता मनुष्य जाति के लिए बहुत महंगा है-

यदि बीमारी का विनाश विजिबल होना कुछ महीने भी लगातार जारी रहा तो बहुत अलग तरह से परिणाम सामने आने वाले। काम का बोझ लिए जो दुनिया चल रही थी यह दिख जाना कि कितना कुछ गैर जरूरी था और इसे अपने ऊपर नीचे गिर जाने के निरंतर ढोते हुए भी के कारण हमने ही बनाया है और इस सब के बिना दुनिया ज्यादा आसान और सरल है।

इस व्यवस्था की खोखलाहट साफ दिखाई पड़नी, पैसा रद्दी हो जाना। ताकत का क्रम जो अभी ऊपर से नीचे की ओर है यह पलटना शुरू हो जाना।
अभी कुछ समय का राशन पानी तो स्टॉक से चल जायेगा लेकिन अगले के लिए तो खेतों पर ही जाना ही पड़ेगा। बीमारी कंट्रोल में नहीं आई तो वह सब भी बर्बाद होना। इस स्थिति में यदि पहुँचे तो मनुष्य अपने इतिहास के सबसे सिरहन और कपकपाहट वाले दौर में पहुँचेगा। बीमारी की भयावकता से अलग वह सब लोग जो एक दूसरे से चैन में जुड़े परजीविता से ताकत लिए हुए है वह अपने बचाव में हिंसा पर उतारू होंगे। उम्मीद है यह लंबा नहीं चल पायेगा।

इन सब भौचक्क कर देनी वाली परिस्थितियों के बीच मनुष्य का ब्रेन एक ऐसा शिफ्ट ले सकता जिसमें
हम सभी अपने बेसिक की तरफ लौटे। और अपने जीवन जीने के तरीकों पर फिर से विचार करेंगे।

यह इस बार नहीं तो कोई सी न कोई सी बार होना ही है। मनुष्य का ब्रेन इन परिस्थितियों में शिफ्ट होकर सही रास्तों पर आ गया तो आ गया वरना प्रकृति अपने हिसाब से पटक ही देगी।

4

राहत पैकेज कोरोना से लड़ने की दिशा में लिया गया सरकार का अच्छा फैसला है। इसके लिए भारत सरकार धन्यवाद की पात्र है।

हालंकि यह कदम बहुत पहले ही उठा लेने चाहिए थे लेकिन यह समय आलोचना या कमियां निकालने का भी नहीं है।
अभी सरकार इस आपातकाल से निबटने में कुछ और पहलुओं पर ध्यान दे सकती है –

टेस्टिंग सेंटर की संख्या युद्ध स्तर पर बढाई जाये। ताकि जो लोग संक्रमित है उनका समुचित इलाज हो सके और वह बाकी लोगों को संक्रमित करने से रोक सके।

प्रत्येक पंचायत में वैकल्पिक अस्पतालों की व्यवस्था की जा सकती। भारतीय रेल, बसों को प्रत्येक हाल्ट पर वार्ड के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

लॉकडाउन के नियम एरिया वाइज घोषित किए जाए ताकि सुरक्षा के नियमों का पालन बिना अफरा तफरी के किया जा सके और लोग बाग अपनी दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए परेशान भी न हो।

पुलिस को निर्देश दिए जाने चाहिए कि बिना पूछताछ और बिना किसी आपात स्थिति के आक्रामक न हो।

बैंक, एटीएम के प्रयोग के नियम बता देने चाहिए।

चूंकि लॉक डाउन का निर्णय अचानक से लिया गया इसलिए जो लोग दूर दराज अपने घरों से दूर फंसे हुए है उनके वापिस जाने की योजना जल्द से जल्द बननी चाहिए। इसमें बड़ा वर्ग वो है जो दैनिक मजदूरी पर जीवन यापन करता है।

बहुत लोगों के पास बैंक अकॉउंट नहीं है, काम न कर पाने की स्थिति में कैश भी नहीं होगा। उनकी मदद सरकार व समाज को किस प्रकार करनी है इस पर भी विचार किया जाये।

5

लॉकडाउन समस्या का समाधान बिल्कुल नही है। लॉकडाउन समस्या से फौरी तौर पर दूरी बनाने को है। वह भी तब जब यह निर्णय महीनों पहले लिया जा सकता हो।
मनुष्य खाने पीने के बिना नहीं रह सकता, मनुष्य दाल सब्जी फसलों एवं अन्य जरूरी पोषक तत्वों के बिना नहीं रह सकता। हमें जो सबसे जरूरी काम है उनके बिना तो रह नही सकते।

साथ के साथ यह समझ लेना बहुत जरूरी है कि पैसा कोई भी खाद्य सामग्री पैदा नहीं करता है। लग्जरी जीवन ऊर्जा चलाने में किसी काम की नहीं है।

जिस ढांचे से दुनिया अभी तक चल रही थी वह इस बार गिरे भले ही न लेकिन उसकी भरभराहट साफ दिख चुकी है।

हमें इस महामारी के साथ सबसे जरूरी काम करने के तरीके सोचने होंगे।
पूरी व्यवस्था को सही क्रम में लाने का जो मौका मिला है उस पर सोच विचार करना चाहिए।

किसानों को अभी फसलों और मवेशियों पर काम करना ही होगा ऐसा तो नहीं है कि पशुओं को जो दूध दही घी वगैरह का इंतजाम करते है उन्हें भूखे छोड़ दिया जाए।

यह सभी काम गहरे आपसी सहयोग पर खड़े होते है। उस आपसी सहयोग को ऐसे खतरों में किस तरह बनाये रखना है उसको लेकर जागरूकता की गहरी जरूरत है।

इससे पहले की स्थितियां कल्पना की हद से ज्यादा खराब हो। किसानों मजदूरों की सहायता से राशन पानी बीमारी से सुरक्षा नियमो का पालन करते हुए उन्हें पैदा करने व प्रोसेस करके
उन लोगो तक पहुँचाने के सही तरीके विकसित किये जायें जो वास्तविक जरूरी कामों में सीधे भागीदारी नहीं कर सकते।

उम्मीद करते है कि यह सब खतरे काल्पनिक हो लेकिन आगे जो खतरे अभी फैंटेसी लग रहे है उनके वास्तविक होने की पूरी पूरी सम्भावनाये है। इसलिए जरूरी है हर प्रकार के मद छोड़ कर चाहे वो सत्ता के हो, पैसे के हो, पोजिशन के हो, बौद्धिकता के हो, धार्मिक हो, जातिगत हो अन्य जितने प्रकार के भी होते हो जो आपको कुछ अलग, खास, या महत्वपूर्ण होने का एहसास कराते हो उन सभी मुखौटो को पहचान कर वास्तविकता में लौटते हुए आपसी सहयोग के सबसे बेहतरीन तरीके खोजते उनका पालन करते हुए आगे बढ़ना होगा।


Nishant Rana 
Social thinker, writer and journalist. 
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance.