बुरी घटनाएं रोज होती है। कोई मिनट ऐसा नहीं जाता जब इस देश में अपराध न होते हो। हमें भी हर बात को खुद की संवेदनाओं में न महसूस करते हुए दूसरे के दिए हुए चश्में से देखने की आदत हो चुकी है तभी हम इस तरह की बाते करने के आदि हो चुके है कि इस बात पर क्यों उस बात पर क्यों नहीं !
हमें इस बात को भी समझना चाहिए तमाम बुरी घटनाओं के बीच कुछ घटनाएं इतने अमानवीय तरीके से सामने आ जाती है जो मानवीय चेतना को झकझोरने में भी सफल हो जाती है। जिसमें कोई भी सामान्य व्यक्ति यहीं कहेगा कि इस तरह की घटना कभी किसी के साथ न हो ।
ऐसा नहीं है कोई राजनैतिक पार्टी के आने या जाने से इस तरह की घटनाओं पर कोई खास फर्क आने वाला है। कोई फर्क आ सकता है तो केवल केवल और केवल तब जब हम हमारा समाज भले ही कितने भी छोटे स्तर पर करे लेकिन किसी भी तरह के यौन हिंसा, बलात्कार के प्रति अपनी असहमति प्रकट करने लगे।
कश्मीर वाली घटना पर मान भी लेते है कि सच्चाई कुछ और हो या इस घटना पर जो राजनीतिकरण हो रहा है वह कोई सच्चाई शायद ही बाहर आने दे।
लेकिन हमारे समाज में हो रहे स्त्रियों एवं बच्चों के साथ हो रहे जघन्य अपराधों के विरोध में यदि समाज एकजुट होता है। इस समझ की और बढ़ता है कि इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए तब राजनैतिक पार्टियां एक मंच पर आए न आये लेकिन एक जिम्मेदार मनुष्य के तौर पर सभी व्यक्तियों को एक जुट होना चाहिए और यह समझना चाहिए कि यह राजनैतिक विरोध या राजनैतिक पक्ष न होकर एक अच्छे समाज की ओर बढ़ने के लिए है।
निवेदन है कि राजनीतिक वाद, जातिवाद, धर्मवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर हम एक सभ्य व संवेदनशील समाज के रूप में अपने आप से समाज के रूप में ‘न’ की अभिव्यक्ति करें। संदेश दें।
आज रात 8 बजे घर के सामने मोमबत्ती या दिया जलाकर खड़े हों। आपका ऐसा करना आपके घर, पड़ोस व मुहल्ले में संदेश तो देगा ही। इसलिए झिझकें नहीं, पूरे आत्मविश्वास के साथ इस अभियान की मशाल जलाइए।

सादर.


Nishant Rana 
Social thinker, writer and journalist. 
An engineering graduate; devoted to the perpetual process of learning and exploring through various ventures implementing his understanding on social, economical, educational, rural-journalism and local governance.